भगवान अभिनंदननाथ की टोंक-इस टोंक का नाम आनन्द कूट है। यहाँ से भगवान अभिनंदननाथ ने एक हजार मुनियों के साथ सिद्धपद प्राप्त किया था।
भाव सहित इस टोंक का वंदन करने से एक लाख उपवास का फल प्राप्त होता है।
जैन धर्म के चौथे तीर्थंकर भगवान अभिनन्दननाथ हैं। भगवान अभिनन्दननाथ जी को अभिनन्दन स्वामी के नाम से भी जाना जाता है।
अभिनन्दननाथ स्वामी का जन्म इक्ष्वाकु वंश में माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को हुआ था। अयोध्या में जन्मे अभिनन्दननाथ जी की माता सिद्धार्था देवी और पिता राजा संवर थे। इनका वर्ण सुवर्ण और चिह्न बंदर था। इनके यक्ष का नाम यक्षेश्वर और यक्षिणी का नाम व्रजशृंखला था। अपने पिता की आज्ञानुसार अभिनन्दननाथ जी ने राज्य का संचालन भी किया। लेकिन जल्द ही उनका सांसारिक जीवन से मोह भंग हो गया।
मान्यतानुसार माघ मास की शुक्ल द्वादशी को अभिनन्दननाथ जी को दीक्षा प्राप्त हुई। इसके बाद उन्होंने कठोर तप किया जिसके परिणामस्वरूप पौष शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। जैन मतानुसार वैशाख शुक्ल की अष्टमी तिथि को सम्मेद शिखर पर भगवान अभिनन्दननाथ ने निर्वाण प्राप्त किया।
Vedio By Aditya Jain 8619567509
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